चूरू, 22 फरवरी। धानुका सेवा ट्रस्ट की ओर से रविवार को फतेहपुर में आयोजित सम्मान समारोह में चूरू के वरिष्ठ साहित्यकार बैजनाथ पंवार को ‘मानुष तनु’ व दुलाराम सहारण को ‘बसंती देवी धानुका युवा साहित्यकार पुरस्कार’ प्रदान किया गया। पुरस्कार स्वरूप पंवार व सहारण को ग्यारह-ग्यारह हजार रुपए नकद के अलावा प्रशस्ति पत्र, श्रीफल, शॉल व पंचमेवा भेंट कर पुरस्कृत किया गया। समारोह में राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ गोरधन सिंह शेखावत को वर्ष 2008 व डॉ मदन सैनी को वर्ष 2009 के लिए सरस्वती सेवा पुरस्कार भी प्रदान किया गया।
समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ चंद्र प्रकाश देवल ने इस मौके पर कहा कि पुरस्कार के बाद लेखक की नैतिक जिम्मेदारी बढ जाती है कि वह अपने सार्थक सृजन से समाज को दिशा दे। राजस्थानी भाषा की मान्यता को उन्होंने राजस्थानियों की अस्मिता का सवाल बताते हुए उन्होंने कहा कि भाषा नहीं तो संस्कृति नहीं और बिना संस्कृति के हमारी कोई पहचान नहीं। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान रखें कि हम भारतीय हैं, इसलिए राजस्थानी नहीं है अपितु राजस्थानी हैं, इसलिए भारतीय हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थानी की मान्यता के आंदोलन को जन आंदोलन बनाना होगा। साथ ही उन्होंने मायड़ भाषा में उत्कृष्ट साहित्य सृजन पर भी बल दिया।
समारोह के प्रधान वक्ता श्याम महर्षि ने भी राजस्थानी की मान्यता की मांग जोरदार ढंग से उठाते हुए कहा कि जब तक भाषा रोजी-रोटी से नहीं जुडे़गी, तब तक उसका अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल है।
साहित्यकार हनुमान दीक्षित की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में विशिष्ट अतिथि राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सीताराम महर्षि, प्रसिद्ध आलोचक डॉ किरण नाहटा ने भी संबोधित किया। आयोजक ट्रस्ट के नरेंद्र कुमार धानुका ने आभार जताया। संचालन डॉ चेतन स्वामी ने किया। समारोह के दौरान डॉ रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित पुस्तक ‘देश-विदेश की लघुकथाएं’ तथा शिशुपाल सिंह नारसरा व गोरधनसिंह शेखावत की पुस्तक ‘गांव की चौपाल एवं अन्य एकांकी’ का विमोचन किया गया। इस दौरान राजस्थानी के वरिष्ठ कवि भंवर सिंह सामौर ने अपनी क्षणिकाओं से श्रोताओं को खूब हंसाया।
कार्यक्रम में केसरी कांत ‘कांत’ पं. उमाशंकर, विश्वनाथ भाटी, सुधींद्र शर्मा सुधि, कमल शर्मा, देवकरण जोशी दीपक, उम्मेद गोठवाल सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, रचनाकार व नागरिक मौजूद थे।
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समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार डॉ चंद्र प्रकाश देवल ने इस मौके पर कहा कि पुरस्कार के बाद लेखक की नैतिक जिम्मेदारी बढ जाती है कि वह अपने सार्थक सृजन से समाज को दिशा दे। राजस्थानी भाषा की मान्यता को उन्होंने राजस्थानियों की अस्मिता का सवाल बताते हुए उन्होंने कहा कि भाषा नहीं तो संस्कृति नहीं और बिना संस्कृति के हमारी कोई पहचान नहीं। उन्होंने कहा कि इस बात को ध्यान रखें कि हम भारतीय हैं, इसलिए राजस्थानी नहीं है अपितु राजस्थानी हैं, इसलिए भारतीय हैं। उन्होंने कहा कि राजस्थानी की मान्यता के आंदोलन को जन आंदोलन बनाना होगा। साथ ही उन्होंने मायड़ भाषा में उत्कृष्ट साहित्य सृजन पर भी बल दिया।
समारोह के प्रधान वक्ता श्याम महर्षि ने भी राजस्थानी की मान्यता की मांग जोरदार ढंग से उठाते हुए कहा कि जब तक भाषा रोजी-रोटी से नहीं जुडे़गी, तब तक उसका अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल है।
साहित्यकार हनुमान दीक्षित की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में विशिष्ट अतिथि राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व अध्यक्ष सीताराम महर्षि, प्रसिद्ध आलोचक डॉ किरण नाहटा ने भी संबोधित किया। आयोजक ट्रस्ट के नरेंद्र कुमार धानुका ने आभार जताया। संचालन डॉ चेतन स्वामी ने किया। समारोह के दौरान डॉ रामकुमार घोटड़ द्वारा संपादित पुस्तक ‘देश-विदेश की लघुकथाएं’ तथा शिशुपाल सिंह नारसरा व गोरधनसिंह शेखावत की पुस्तक ‘गांव की चौपाल एवं अन्य एकांकी’ का विमोचन किया गया। इस दौरान राजस्थानी के वरिष्ठ कवि भंवर सिंह सामौर ने अपनी क्षणिकाओं से श्रोताओं को खूब हंसाया।
कार्यक्रम में केसरी कांत ‘कांत’ पं. उमाशंकर, विश्वनाथ भाटी, सुधींद्र शर्मा सुधि, कमल शर्मा, देवकरण जोशी दीपक, उम्मेद गोठवाल सहित बड़ी संख्या में साहित्यप्रेमी, रचनाकार व नागरिक मौजूद थे।
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