Sunday, November 2, 2014
Wednesday, January 25, 2012
देवेंद्र झाझड़िया को पद्मश्री की घोषणा
देवेंद्र झाझड़िया ः हौसला बना हथियार
एथेंस पैरा ओलंपिक में देश के लिए सोना जीतकर इतिहास रच चुके देवेंद्र झाझड़िया को पद्मश्री की घोषणा
स्वप्न देखने की उम्र में बिजली के करंट का शिकार होकर अपना एक हाथ गंवा देने वाले दस साल के देवेेंद्र झाझड़िया के लिए यह हादसा कोई कम नहीं था। दूसरा कोई होता तो दुनिया की दया, सहानुभूति तथा किसी सहायता के इंतजार और उपेक्षाओं के बीच अपनी जिंदगी के दिन काटता लेकिन हादसे के बाद एक लंबा वक्त बिस्तर पर गुजारने के बाद जब देवेंद्र उठा तो उसके मन में एक और ही संकल्प था और उसके बचे हुए दूसरे हाथ में उस संकल्प की शक्ति देखने लायक थी। देवेंद्र ने अपनी लाचारी और मजबूरी को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया, उल्टा कुदरत के इस अन्याय को ही अपना संबल मानकर हाथ में भाला थाम लिया और एथेेंस पैराओलंपिक में भालाफेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीत कर वो करिश्मा कर दिखाया जो आज तक इस देश के लिए कोई खिलाड़ी नहीं कर सका था।
चूरू जिले की राजगढ़ तहसील के छोटे से गांव जयपुरिया की ढाणी में एक साधारण किसान रामसिंह के घर 10 जून 1981 को जन्मे देवेंद्र किसी परिचय के मोहताज नहीं। सुविधाहीन परिवेश और विपरीत परिस्थितियों को देवेेंद्र ने कभी अपने मार्ग की बाधा स्वीकार नहीं किया। गांव के जोहड में एकलव्य की तरह लक्ष्य को समर्पित देवेंद्र ने लकड़ी का भाला बनाकर खुद ही अभ्यास शुरू कर दिया। विधिवत शुरूआत हुई 1995 में स्कूली प्रतियोगिता से। कॉलेज में पढ़ते वक्त बंगलौर में राष्ट्रीय खेलों में जैवलिन थ्रो और शॉट पुट में पदक जीतने के बाद तो देवेंद्र ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। 1999 में राष्ट्रीय स्तर पर जैवलिन थ्रो में सामान्य वर्ग के साथ कड़े मुकाबले के बावजूद स्वर्ण पदक जीतना देवेंद्र के लिए बड़ी उपलब्धि थी।
यूंं उपलब्धियों का सिलसिला चल पड़ा पर वास्तव में देवेेंद्र के ओलंपिक स्वप्न की शुरुआत हुई 2002 के बुसान एशियाड में स्वर्ण पदक जीतने के साथ। इसके बाद 2003 के ब्रिटिश ओपन खेलों में देवेंद्र ने जैवलिन थ्रो, शॉट पुट और ट्रिपल जंप तीनों स्पर्धाओं में सोने के पदक अपनी झोली में डाले। देश के खेल इतिहास में देवेंद्र का नाम उस दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया, जब उन्होंने एथेेंस पैरा ओलंपिक में भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाले पहले खिलाड़ी बने देवेंद्र। देवेेंद्र की कामियाबियों पर उन्हें बहुत सारे पुरस्कार-सम्मान दिये जा चुके हैं। इस फेहरिश्त में स्पेशल स्पोट्र्स अवार्ड 2004, अर्जुन अवार्ड 2005, राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार 2005, मेवाड़ फाउंडेशन का प्रतिष्ठित अरावली सम्मान 2009 सहित बहुत सारे नाम दर्ज हैं जो देवेंद्र की प्रतिभा और हौसले के प्रतीक हैं।
भारत रत्न डॉ एपीजे अब्दुल कलाम और अपनी मां जीवणी देवी को अपना आदर्श मानने वाले देवेंद्र की झोली आज पदकों-पुरस्कारों से भरी पड़ी है और देवेंद्र कामयाबी के इस आसमान पर खड़े होकर भी अपनी मिट्टी को सलाम करते हैं। खेलों के सिलसिले में 14 देशों का सफर कर चुके देवेंद्र को सुकून तक मिलता है, जब वे गांव आने के बाद थाली भरकर देसी राबड़ी पीते हैं और अपने खेल जीवन की शुरुआत में कर्मस्थली बनी गांव के जोहड़ की मिट्टी में अभ्यास करते हैं। मई 2007 में विवाह सूत्र में बंधे देवेंद्र की जीवन-संगिनी मंजू भी कबड्डी की राष्ट्रीय स्तर की खिलाड़ी रह चुकी हैं।
साधारण परिवेश और अभावों की बहुलता से अपने हौसले के दम पर संघर्ष कर इतिहास रचने वाले राजस्थान के नूर और युवा पीढ़ी के प्रेरणा स्रोत देवेंद्र झाझड़िया को पद्मश्री अवार्ड दिए जाने की घोषणा बुधवार को भारत सरकार की ओर से की गई है। देवेंद्र ने अपनी यह उपलब्धि अपने माता-पिता को समर्पित करते हुए कहा कि उन्हे इस सूचना से बहुत खुशी हुई है। इससे समाज के तमाम निःशक्तों का हौसला बढेगा और निःशक्तों के प्रति लोगों की धारणाओं में बदलाव आएगा।
-कुमार अजय
सहायक जनसंपर्क अधिकारी, चूरू।
Monday, January 17, 2011
गौरव की निगाहें अब एकोन्कागुआ की ओर
माउंट एवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाले राजस्थान के पहले सिविलियन और चूरू के लाडले गौरव शर्मा की निगाहें अब दक्षिण अमेरिका महाद्वीप के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट एकोन्कागुआ की ओर हैं। विश्व के सातों महाद्वीपों की सबसे ऊंची पहाड़ी चोटियों पर तिरंगा फहराने के ख्वाहिशमंद गौरव संभवतः इस वर्ष मार्च में 23 हजार 834 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस पर्वत शिखर पर कदम रख चुके होंगे।
गौरव के मुताबिक, दुनिया के सबसे बड़े सांप एनाकोंडा के लिए मशहूर अर्जेंटीना के इस पर्वत शिखर पर चढाई के लिए मार्च से लेकर जून तक का मौसम सबसे बेहतर माना जाता है। वे इस सीजन की शुरुआत में ही इस अभियान को पूरा करने के मूड में हैं। रॉक्स की बहुतायत के कारण एकोन्कागुआ में आरोहण के लिए ज्यादातर रॉक क्लांइंबिंग के सहारे ही चढाई संभव होगी। चट्टानों की अधिकता से फिसलन के खतरे के चलते भी यह चढाई खासी चुनौतीपूर्ण रहेगी। इससे पहले गौरव को दलदली और कीचड़ भरे रास्ते से गुजरना होगा। गौरव बताते हैं कि वहां वातावरण अनुकूलन में भी थोड़ी परेशानी आ सकती है क्योंकि हिमालय की बजाय वहां की परिस्थितियां कुछ अलग हैं और ऑक्सीजन की मात्रा का प्रतिशत भी कम है। इन सब मुश्किलों के बावजूद गौरव के मन में कोई घबराहट, कोई बैचेनी नहीं क्योंकि गौरव को अपने हौंसले और शुभचिंतकों की दुआओं पर पूरा भरोसा है। फिर साउथ अ अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत किलीमिंजारो में उनके हमसफर रहे जयपुर के युवा साथी हरनाम सिंह इस बार भी उनके साथ होंगे। ऎसे में कहा जा सकता है निस्संदेह गौरव मार्च 2011 के किसी खूबसूरत पल में एकोन्कागुआ पर तिरंगा लहराते हुए उस पल की खूबसूरती में और इजाफा कर रहे होंगे।
सात शिखर छूने का सपना
चूरू के बाशिंदे गौरव ने 20 मई 2009 को दुनिया की सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी एवरेस्ट पर तिरंगा फहराया था। इसके बाद उन्होंने विश्व के सातों महाद्वीपों के सर्वाधिक ऊंचाई वाले पर्वत शिखरों के आरोहण का संकल्प किया। इसी सपने को सच करने की दिशा में उन्होंने पिछले साल स्वाधीनता दिवस के मौके पर दक्षिणी अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत शिखर माउंट किलीमिंजारो पर अपने कदम रखे। अपने इन अभियानों में गौरव को खासी शारीरिक और आर्थिक परेशानियों का सामना करना पडा है लेकिन वे हार मानने वालों में से नहीं हैं। हर बार अपनी संघर्ष क्षमता के बूते इन्होंने सफलता का दामन थामा है।
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Thursday, January 6, 2011
Thursday, December 30, 2010
Thursday, December 23, 2010
Friday, May 7, 2010
चूरू के जयपाल स्वामी का आईसीएस में चयन
जिले की तारानगर तहसील के गांव बूचावास में किसान दंपत्ति महादेव प्रसाद स्वामी और माता शांति देवी के आंगन में आठ जनवरी 1980 को जन्मे जयपाल स्वामी फिलहाल राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय सोमासी में तृतीय श्रेणी अध्यापक पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने एसबीडी कॉलेज सरदारशहर से बीए करने के बाद राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान नई दिल्ली से बीएड का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। इससे पूर्व वे छह बार आईसीएस परीक्षा में शामिल हो चुके हैं और तीन बार इंटरव्यू का सामना उन्होंने किया है। गत वर्ष आरएएस में उन्होंने 17 वीं रैंक हासिल की थी।
जयपाल ने अपनी सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को दिया है, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बावजूद उसके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं आने दी। आईसीएस परीक्षा के लिए जयपाल ने दिल्ली में रहकर भी तैयारी की, जिसका लाभ उन्हें आरएएस परीक्षा में भी मिला तो आईसीएस में भी। जयपाल कहते हैं कि प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता पानी है तो पढाई का हिसाब घंटों में मत रखो। जब तक अध्ययन बिंदु समझ में नहीं आ जाए, तब तक उसे छोड़ो मत, इसमें चाहे कितना भी समय लगे।
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बायोडाटा - जयपाल स्वामी
नाम -श्री जयपाल स्वामी
पिता का नाम श्री महादेव प्रसाद स्वामी
माता का नाम श्रीमती शांति देवी
आईसीएस में रैंक 453 वीं
जन्म तिथि 08.01.1980
शिक्षा बीए, बीएड
पता ग्राम -बूचावास, तारानगर, चूरू राजस्थान
मोबाइल नंबर 9783337713
प्रयास -आईसीएस में यह सातवां प्रयास
-पूर्व में तीन बार इंटरव्यू का सामना
-आरएएस 2009 में 17 वीं रैंक
संप्रति तृतीय श्रेणी अध्यापक, राउप्रावि सोमासी, चूरू।
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