वीणा ने रचा इतिहास
छोटे-बडे़ हर व्यक्ति का बचपन सुन्दर स्वप्नों और मोहक कल्पनाओं में गुजरता है। इन्हीं सपनों में रूपवती परियां और राजा-रानी तो होते ही हैं, लेकिन ये सपने जब थोड़े विस्तृत होकर अपने ही जीवन से जुड़ जाते हैं तो फिर मन का पंछी दूसरी ही उड़ान भरता है। फिर भी अपने ही जीवन से जुड़े ऐसे आकाशीय तारों को तोड़ना हर एक के बस की बात तो नहीं। हां, जो व्यक्ति हौसले और लगन के साथ सही दिशा का दामन थाम कर काम में जुट जाता है तो फिर उसके लिए कोई काम असंभव भी नहीं।
अपनी अदम्य प्रतिभा और साहस के दम से इसी तरह इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है मरूधरा के चूरू जिले के गांव रतनपुरा मूल के कर्नल एचएस सहारण की लाडली बेटी स्क्वाड्रन लीडर वीणा सहारण ने। भारतीय वायुसेना के परिवहन बेड़े के सबसे बड़े और ताकतवर विमान गजराज (आई एल 76) को उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनकर वीणा ने पुरूषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में धमाकेदार दस्तक दी है।
यूं तो वीणा का लगाव बचपन से ही हवाई जहाजों से रहा। जयपुर में अपने घर की छत पर चढकर जब आकाश में उड़ते जहाजों को वीणा देखती तो अपनी मां से कहती कि एक दिन इन जहाजों को मैं भी उड़ाऊंगी। पिता कर्नल सहारण के सेना में पदस्थ होने के कारण शुरू से ही सैन्य परिवेश में रही वीणा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बेहतर नंबरों के साथ बीएससी ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इस डिग्री के दौरान ही एनसीसी का सी प्रमाण पत्र लेने के साथ ही पर्वतारोहण का प्रशिक्षण कोर्स किया। 2001 में भारतीय वायुसेना में अधिकारी पद के लिए आवेदन किया और पास होकर 2002 में कमीशन लेकर सर्वश्रेष्ठ महिला पायलट होने का गौरव हासिल किया।
पायलट बनते ही आकाश में उड़ने का वीणा का स्वप्न फिर परवान चढ़ने लगा। वीणा इतिहास रचने की तैयारी में जुट गई। वायुसेना के जहाजों में वीणा ने दो हजार घंटों की सफल उड़ान भरी। सेना की चंडीगढ स्थित 25 वीं स्क्वाड्रन में एएन 32 जहाज से दुर्गम माने जाने वाले लेह, लद्दाख और सियाचिन जैसे लक्ष्यों के लिए सफल उड़ान भरी। दो ताकतवर इंजिनों वाला हवाई जहाज ‘एएन-32’ सात टन वजन ढोने की क्षमता रखता है। वीणा के इस साहसिक रिकार्ड और जांबाज जिगर को देखकर ही उसका चयन ‘आईएल- 76’ उड़ाने के लिए किया गया। गजराज के नाम से मशहूर इस जहाज में 43 टन वजन ले जाने की सामथ्र्य है। वीणा से पहले किसी भी महिला पायलट ने इस जहाज को नहीं उड़ाया था। इसलिए वीणा ने आगरा में मेंटिनेंस कन्वर्जन कोर्स किया और नागपुर में भी विशेष प्रशिक्षण लिया।
आखिर वह दिन आ ही पहुंचा, जिसका वीणा और उसे स्वप्न दिखाने वाले माता-पिता सहित हम सबको इंतजार था। मार्च 2009 में गजराज की उड़ान भरते समय खुद वीणा की खुशी का ठिकाना नहीं था। आज उसका बचपन में खुली आंखों से देखा गया सपना जवान हो चुका था। इस उड़ान को अपने जीवन का सर्वाधिक गर्व भरा क्षण घोषित करते हुए वीणा ने कहा कि इस सफलता के बाद सैन्य क्षेत्र में महिलाओं के लिए अधिक अवसर पैदा होंगे। वास्तव में वीणा सहारण आज देश की महिला शक्ति के लिए प्रेरणा का एक पुंज है। वीणा की प्रेरणा से हजारों-लाखों वीणाएं यहां पैदा होंगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
छोटे-बडे़ हर व्यक्ति का बचपन सुन्दर स्वप्नों और मोहक कल्पनाओं में गुजरता है। इन्हीं सपनों में रूपवती परियां और राजा-रानी तो होते ही हैं, लेकिन ये सपने जब थोड़े विस्तृत होकर अपने ही जीवन से जुड़ जाते हैं तो फिर मन का पंछी दूसरी ही उड़ान भरता है। फिर भी अपने ही जीवन से जुड़े ऐसे आकाशीय तारों को तोड़ना हर एक के बस की बात तो नहीं। हां, जो व्यक्ति हौसले और लगन के साथ सही दिशा का दामन थाम कर काम में जुट जाता है तो फिर उसके लिए कोई काम असंभव भी नहीं।
अपनी अदम्य प्रतिभा और साहस के दम से इसी तरह इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया है मरूधरा के चूरू जिले के गांव रतनपुरा मूल के कर्नल एचएस सहारण की लाडली बेटी स्क्वाड्रन लीडर वीणा सहारण ने। भारतीय वायुसेना के परिवहन बेड़े के सबसे बड़े और ताकतवर विमान गजराज (आई एल 76) को उड़ाने वाली पहली महिला पायलट बनकर वीणा ने पुरूषों के वर्चस्व वाले इस क्षेत्र में धमाकेदार दस्तक दी है।
यूं तो वीणा का लगाव बचपन से ही हवाई जहाजों से रहा। जयपुर में अपने घर की छत पर चढकर जब आकाश में उड़ते जहाजों को वीणा देखती तो अपनी मां से कहती कि एक दिन इन जहाजों को मैं भी उड़ाऊंगी। पिता कर्नल सहारण के सेना में पदस्थ होने के कारण शुरू से ही सैन्य परिवेश में रही वीणा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से बेहतर नंबरों के साथ बीएससी ऑनर्स की डिग्री हासिल की। इस डिग्री के दौरान ही एनसीसी का सी प्रमाण पत्र लेने के साथ ही पर्वतारोहण का प्रशिक्षण कोर्स किया। 2001 में भारतीय वायुसेना में अधिकारी पद के लिए आवेदन किया और पास होकर 2002 में कमीशन लेकर सर्वश्रेष्ठ महिला पायलट होने का गौरव हासिल किया।
पायलट बनते ही आकाश में उड़ने का वीणा का स्वप्न फिर परवान चढ़ने लगा। वीणा इतिहास रचने की तैयारी में जुट गई। वायुसेना के जहाजों में वीणा ने दो हजार घंटों की सफल उड़ान भरी। सेना की चंडीगढ स्थित 25 वीं स्क्वाड्रन में एएन 32 जहाज से दुर्गम माने जाने वाले लेह, लद्दाख और सियाचिन जैसे लक्ष्यों के लिए सफल उड़ान भरी। दो ताकतवर इंजिनों वाला हवाई जहाज ‘एएन-32’ सात टन वजन ढोने की क्षमता रखता है। वीणा के इस साहसिक रिकार्ड और जांबाज जिगर को देखकर ही उसका चयन ‘आईएल- 76’ उड़ाने के लिए किया गया। गजराज के नाम से मशहूर इस जहाज में 43 टन वजन ले जाने की सामथ्र्य है। वीणा से पहले किसी भी महिला पायलट ने इस जहाज को नहीं उड़ाया था। इसलिए वीणा ने आगरा में मेंटिनेंस कन्वर्जन कोर्स किया और नागपुर में भी विशेष प्रशिक्षण लिया।
आखिर वह दिन आ ही पहुंचा, जिसका वीणा और उसे स्वप्न दिखाने वाले माता-पिता सहित हम सबको इंतजार था। मार्च 2009 में गजराज की उड़ान भरते समय खुद वीणा की खुशी का ठिकाना नहीं था। आज उसका बचपन में खुली आंखों से देखा गया सपना जवान हो चुका था। इस उड़ान को अपने जीवन का सर्वाधिक गर्व भरा क्षण घोषित करते हुए वीणा ने कहा कि इस सफलता के बाद सैन्य क्षेत्र में महिलाओं के लिए अधिक अवसर पैदा होंगे। वास्तव में वीणा सहारण आज देश की महिला शक्ति के लिए प्रेरणा का एक पुंज है। वीणा की प्रेरणा से हजारों-लाखों वीणाएं यहां पैदा होंगी, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।
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